मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

अगर आपके पापा भी खो गए तो ?

टेलिविज़न पर आजकल चल रहा वह विज्ञापन आपने भी देखा होगा जिसमें एक बच्चा माँ से अपनी रिमोट वाली कार खोने की शिकायत करता है. तभी, पड़ोसी / पारिवारिक मित्र कार दिलाने की बात करता है तो बच्चा तपाक से जिस लहजे में कहता है कि 'कार आप क्यों दिलाएंगे, मेरे पापा दिलाएंगे' , सुनकर आश्चर्य हुआ कि ऐसा कौन रचनाधर्मी होगा जो बच्चे से यूँ कहलवाने का माद्दा रखता होगा .

हद तो तब हो गई जब, इसी विज्ञापन में, पड़ोसी / पारिवारिक मित्र को आगे यह कहते सुना कि 'अगर आपके पापा भी खो गए तो ?' मैं जानना चाहता था कि ऐसा विज्ञापन किसका हो सकता है जिसे न बच्चे की भावनाओं की परवाह है, न ही बात करने की तमीज.

और सच्चाई मेरे सामने थी.....यह बाबुओं की एक और सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम का विज्ञापन था. एक करेला दूसरा नीम चढ़ा. ऐसे विज्ञापनों की परिकल्पना केवल वही सिफारिशी लोग कर सकते हैं जिनके लिए कला और काला में कोई अन्तर नहीं होता. और, निसंदेह ऐसे विज्ञापनों को केवल ऐसे बाबू लोग ही वाह-वाह करते हुए स्वीकृत कर सकते हैं जिनके लिए अपनी ओछी तथाकथित रचनात्मकता का आत्मविज्ञापन महज़ भोंडे फैशन से ज़्यादा कुछ भी नहीं होता.

रविवार, 21 दिसंबर 2008

ताज, ओबेरॉय और शेक्सपियर....

कभी कभी सोचता हूँ... ये सही बात है कि शेक्सपियर के पात्रों की त्रासदी बड़े लोगों की त्रासदी होती थी इसीलिए, पढ़ा-लिखा तबका उन्हें आज भी याद करता है....
मुंबई के CST, ताज, ओबेरॉय, नरीमन हाउस और टैक्सीओं में कई लोगों ने दुर्भाग्यपूर्ण घटना में जान खोई..... पर क्यों हमारी नज़र केवल ताजों के दोबारा शुरू होने पर ही जा टिकती है ?.... शेक्सपियर फिर याद आता है.

कार्टून: गुद्दी पे हाथ डालने का अधिकार...

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

लघुकथा : लॉंग शॉट

एक दिन, दूरदर्शन स्टूडियो के बाहर कॅमरा लगाए कोई अंदर की शूटिंग कर रहा था. मेरा आश्चर्य से फटा मुँह उसने यूँ बंद किया -' क्या बताउँ बाउजी , अनाउन्सर इतनी मोटी हो गयी है कि उसे फ्रेम में फिट करने के लिए लोंग शॉट का यही एक तरीका बचा है.'

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