मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

कार्टून : आओ अब ये अफ़वाह उडाई जाए.

13 टिप्‍पणियां:

  1. कार्टून बना कर तो आपने पाकिस्तान का काम आसान कर दिया, अब तो समझो हवा उड़ ही गई..........

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  2. बहुत बढिया आईडिया दिया है आपने.:)

    रामराम.

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  3. नेता नामक जीव

    का तोड़ डालोगे

    लगता है हरेक

    नीला पीला पत्‍ता

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  4. यह तो वही बात हो गई कि मूर्ख से कहें कि घर मत जलाना....

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  5. wow! great idea ! Kaajal bhai today i have written on long dead comic-magazine Madhumuskaan . You are specially invited to comment on the same at Maykhaana.blogspot.com
    U must be knowing more abot this mag. so pls share ur views.

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  6. देखना कल कही इस कार्टून को देखकर सच में कह ही ना दें। बेहतरीन।

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  7. @ मुनीश ( munish )
    वाह भाई मुनीश जी, आप तो 'मधुमुस्कान' पत्रिका के वाकई इतने बड़े मुरीद होंगे मुझे पता न था...इतने अंक अभी भी आपके ख़जाने में हैं...इतना संभाल कर तो शायद मैंने 'लोटपोट' के अंक भी नहीं रखे होंगे जबकि मैं तो १९८२ से २००६ तक, जिसके लिए लगभग २५ साल तक चिम्पू और मिन्नी बनाता रहा हूँ. आप जैसे पाठकों से मिलकर आश्चर्य ही नहीं होता ईर्ष्या भी होती है :-)

    जोधपुर में दैनिक नवज्योति के पत्रकार, डॉक्टर ने देवेंदर सिंह लालस ने भारतीय कार्टूनिंग पर PhD की थी. शायद वे इस विषय पर शोध करने वाले पहले व्यक्ति हैं. आप जैसे सुधि पाठक ही ऐसे शोधार्थियों के लिए सोने की खान हैं.

    'मधुमुस्कान' में मुख्यतः हरीश म. सूदन के कार्टून छपते थे. समय के साथ साथ लोटपोट, मधुमुस्कान, दीवाना... जैसी कार्टून प्रधान हिंदी बाल पत्रिकाओं के सर्कुलेशन में भारी गिरावट के चलते या तो इनका प्रकाशन बंद हो गया या सर्कुलेशन बहुत कम हो गया है. ये पत्रिकाएँ भारतीय चरित्रों के साथ आती थीं, जो शहरी हिंदीभाषी बच्चों में बहुत लोकप्रिय रहीं. आज शहरी मद्ध्यवर्ग परिवारों के बच्चे हिंदी माध्यम के स्कूलों में नहीं जाते. इसलिये इन बच्चों में अंग्रेजी पत्रिकाएँ और अंग्रेजी चरित्र बहुलता से लोकप्रिय हैं. प्रकाशकों और अध्यापकों की भारतीयता में विशेष रूचि नहीं है. इसके चलते अब ये इतिहास का हिस्सा हैं.

    आप जैसे पाठकों और धरोहर के सरंक्ष्कों को नमन.

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  8. बहुत से काम अफवाहों से ही सरकते हैं।

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  9. Thanx a lot Kajal bhaee for sharing ur experiences on my blog. That collection of comics belongs to Comic World . Why can't we have Chimpu and Mini again . I can still vividly recall their antics and mischievous shaitaaniyaan.

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