गुरुवार, 26 मई 2011

मेरी मस्कट (ओमान) यात्रा

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ओमान की राजधानी मस्कट की हवाई दूरी मुंबई से महज़ 2 घंटे है. इसकी क़रीब 32 लाख की जनसंख्या में लगभग 11  लाख विदेशी हैं जिनमें से लगभग दो-तिहाई भारतीय हैं. यहां 81% साक्षरता है व पुरूष-महिलाएं समाजिक गतिविधियों में  लगभग समान रूप से सम्मिलित हैं. लगभग 100 भारतीयों को ओमानी नागरिकता दी गई  है जो इस क्षेत्र के देशों की नीतियों से मेल नहीं खाता लगता.
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मस्कट, समुद्र किनारे कई पहाड़ियों के बीच बसा हुआ शहर है. यहां गर्मियों में तापमान 50 डिग्री तक चला जाता है. यहां क़ानून व्यवस्था बहुत अच्छी है, तीन दिन में यहां मुझे एक भी पुलिसवाला नहीं दिखा. यहां अगर ओमानी ड्राइवर अपने मालिक साथ बैठ कर एक ही प्लेट से कुछ खा रहा हो तो आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए, यहां के समाज में भारतीयों जैसी कई मूर्खताएं नहीं हैं.
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पारंपारिक वेषभूषा में एक
ओमानी नागरिक
यहां अधिकांश इमारतों का रंग सफेद है.
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जंगल में मंगल. पथरीले धरातल पर फैली हरियाली. यहां बिजली के खंभों के डिज़ाइन  सुरूचिपूर्ण दिखेंगे. सुलतान क़बूस के चित्र यूं सार्वजनिक स्थलों पर देखे जा सकते हैं.
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समुद्र के किनारे बनाया गया है भारत का नया राजदूतावास. ओमान में भारतीय समुदाय ने अच्छा नाम कमाया है.
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समुद्र किनारे बनाए गए अल-बुस्तान होटल के पास अपना प्राइवेट बीच भी है.
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‘सुल्तान क़बूस मस्जिद’ देखने लायक है. इसे 2001 में पूरा किया गया है. यह एक बहुत विशाल मस्जिद है. इसके सामने रंग-बिरंगे फूलों की छटा देखते ही बनती है.
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‘मत्राह सूक’ यहां का परंपरागत बाज़ार है जो अरब-जगत के सबसे पुराने बाज़ारों में से एक है. इसमें भारतीय मूल के भी कई लोगों की दुकानें हैं. मत्राह, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक बंदरगाह है. यह अरब-जगत के पूर्व के साथ होने वाले व्यापार का एक प्रमुख क्षेत्र रही है.
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यहां पुर्तागालियों ने कुछ समय तक कब्जा बनाए रखा. म़त्राह सूक के बाहर एक पुर्तगाली चौकी. मत्राह सूक के बाहर आराम करते लोग. यह लोगों के बैठने का ख़ास अड्डा है.
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सुल्तान का महल व महल के सामने का सामने का दृश्य.  सुल्तान क़बूस ने भारत में शिक्षा पाई है. पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा इनके अघ्यापक रहे. मस्कट के लोग आज भी याद करते हैं कि जैसा स्वागत श्री शंकरदयाल शर्मा जी का हुआ था वैसा आजतक किसी दूसरे राष्ट्राध्यक्ष का नहीं हुआ.
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मत्राह बंदगाह पर शाही नौका मत्राह बंदगाह के किनारे एक टाइमपास दुकान.
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मत्राह बंदगाह के किनारे पारंपरिक मकान जिन्हें देखकर बरबस ही भारतीय परिवेश का बोध होता है
यहां गगन चुंबी इमारतो का रिवाज़ नहीं है और चारों ओर खुलेपन का आभास होता है.
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और अंत में…..
होटलों के कमरों में आमतौर से रेफ़्रीजिरेटर होता है जिसमें पीने वालों के लिए माल-मत्ता रहता है. इसे मिनी-बार कहते हैं. प्रयोग की गई बोतल का भुगतान अलग से करना होता है. यहां, पहली बार, मुझे मिनी-बार पर एक सील भी लगी मिली :) 

-काजल कुमार

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